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Tuesday, February 26, 2008

ब्रेल

उभरे हुए छः बिन्दु, अलग-अलग स्वरूप बनाते हुए, ऐसे दिखते हैं जैसे की पूरे पृष्ठ पर फैला हुआ तारा मण्डल। क्या है ये? संख्या, अक्षर, शब्द? किसने बनाया इन्हें? इनका क्या मतलब है? कही कोई सांकेतिक भाषा तो नहीं? ऐसे बहुत सारे प्रश्‍न जहन में आते है जब हम किसी भी ऐसे पृष्ठ को देखते है जिसमें बहुत सारे उभरे हुए बिन्दु हो।   
१८२९ में लुईस ब्रेल ने उभरे हुए बिन्दुओं के माध्यम से शब्द, संगीत, गीत लिखने की एक नयी विधि प्रकाशित की, जिसे दृष्टिहीनों द्वारा इस्तेमाल किया जाने लगा। लुईस ब्रेल का जन्म ४ जनवरी १८०९ में फ्रांस के एक छोटे से शहर कोउपवरे में एक जूता बनाने वाले के घर हुआ था। ३ साल की उम्र में खेल-खेल के दौरान ही लुईस ब्रेल की एक आंख चमड़े में छेद करने वाले औजार से घायल हो गई और धीरे-धीरे संक्रमण दूसरी आंख में भी हो गया जिसकी वजह से वे पूरी तरह से दृष्टिहीन हो गयें। इस ३ वर्षीय दृष्टिहीन बच्चें नें १५ वर्ष की उम्र तक पहुचते-पहुचते ब्रेल विधि का आविषकार कर लिया था। आज इस विधि ''ब्रेल'' का इस्तेमाल लिखने पढ़ने के लिए लगभग सभी देशों की भाषाओं में दृष्टिहीनों द्वारा किया जा रहा है।  
छः उभरे हुए बिन्दुों का ही जादू है कि आज दुनिया भर के दृष्टिहीन आम लोगो की तरह लिखने पढ़ने में सक्षम हो पा रहे है। इन छः उभरे हुए बिन्दुों के माध्यम से ६३ विभिन्न प्रकार के सयोंजन बना कर किसी भी भाषा में लिखा जा सकता है। गणित, विज्ञान आदि अन्य कई विषयों में भी ब्रेल का इस्तेमाल किया जाता है। ब्रेल को पढ़ने के लिए ऐसे कागज - जिस पर ब्रेल कोड उभार लिए हुए उत्कीर्ण होता है - पर उंगुलियां धीरे-धीरे फिसलते हुए चलाई जाती हैं। एक धातु की स्लेट पर लगे कागज पर लिखित मसौदा प्राप्त करने हेतु एक नुकीले उपकरण से बिन्दुओं को दबाया जाता है। इस प्रकार पठन सामग्री कागज के दूसरी तरफ उभर आती है। जिसे स्पर्श करके पढ़ा जाता है।  
ब्रेल पद्धति के मूल आधार को 'ब्रेल सेल' के नाम से जाना जाता है। ये सेल ६ बिन्दुओं के होते हैं और एक निश्चित क्रमबद्धता में होते हैं। प्रत्येक बिन्दु या बिन्दुओं की श्रृंखला वर्णमाला के किसी अक्षर को प्रदर्च्चित करता है। उदाहरणार्थ यदि आप ब्रेल की वर्णमाला में देखें तो पायेगें कि बिन्दु १ वर्णाक्षर अ तथा बिन्दु १ और २ वर्णाक्षर क को प्रदर्च्चित करतें हैं।    
इसी तरह ब्रेल में पूरी वर्णमाला लिखी जा सकती है। नीचे दी गई तालिका में हिन्दी वर्णमाला को ब्रेल लिपी में दिखाया गया है। बड़े बिन्दुओं को उभरे हुऐ बिन्दुओं के रूप में दिखाया गया है। उभरे हुऐ बिन्दुओं को समझने के लिए ही यहा पर छोटे बिन्दुओं को भी दर्च्चाया गया है। असली ब्रेल में ये छोटे बिन्दु नहीं होते है। ब्रेल सेल के विभिन्न संयोजन के द्वारा विराम चिन्ह, अंक, संगीत के चिन्ह यहां तक कि उच्च गणित को भी लिखा जाता है।    

ब्रेल पद्धति का विकास होने से पहले दृष्टिहीनों को पढ़ने लिखने में बहुत समय लगता था क्योंकि वे अक्षरों को उभार कर लिखते और पढ़ते थें। ब्रेल पद्धति के विकास से लिखने और पढ़ने में कम समय लगने लगा और पहले की अपेक्षा लिखना-पढ़ना बहुत आसान हो गया। आधुनिक युग में बहुत सी नई तकनीकों का विकास हुआ जिसने दृष्टिहीनों का लिखने-पढ़ने का काम और आसान कर दिया। आधुनिक युग में ब्रेल पद्धति से लिखने-पढ़नें के लिए बहुत से उपकरणों का इस्तेमाल होता है। कुछ तो ऐसें है जिनसे ब्रेल में किताबे तक बन जाती है और कुछ जो कि कम्प्यूटर/ इन्टरनेट के माध्यम से उपलब्ध जानकारी को पढ़ने में मदद करते हैं। कुछ उपकरण ऐसे है जो इस्तेमाल में आसान होने के साथ-साथ किफायती भी हैं तो कुछ ऐसे जिनको इस्तेमाल करने के लिए काफी मेहनत करती पड़ती है और महंगे भी हैं।   
वर्तमान समय में कम्प्यूटर के माध्यम से अक्षरों को ब्रेल में बदल कर, ब्रेल प्रिन्टर/इम्बोसर का इस्तेमाल करके बहुत आसानी से किताबो, पत्रिकाओं का मुद्रण किया जाने लगा है। कुछ प्रमुख उपकरण जिनका उपयोग बहुत से दृष्टिहीन अपने स्कूल के काम, नौकरी के दौरान या फिर अपने व्यक्तिगत काम करने में करते हैं वे हैः - ब्रेल स्लेट और स्टाइलस, ब्रेल डिसप्ले, ईलेक्ट्रानिक बे्रल नोट-टेकर्स, ब्रेल प्रिन्टर, ब्रेल राईटर इत्यादि।