Tuesday, January 1, 2008

मै भी पढ़-लिख सकती हूँ।

''जी हॉं मै भी पढ़ सकती हूँ लोगों की भावनाओं को, उनके अनुभवों को, उनकी सफलताओं को, समाचार को और भी बहुत कुछ। मुझे भी लिखना आता है अपने विचारो को, अपनी भावनाओं को, मै भी लिख कर अपनी भावनाओं, विचारों को सभी लोगों के साथ बांट सकती हूँ और अपना योगदान दे सकती हूँ संसार को आगे बढ़ाने में, समाज को बेहतर बनाने में। आप सोच रहे होंगे कि इसमें कौन सी ऐसी नयी बात है जिसके लिए मैं उत्साहित हूँ - एक पढ़े-लिखे व्यक्ति से सब लोग इसी तरह की उम्मीद रखते है।  लेकिन नहीं यहां पर एक बडा+ अंतर है - मैं दृष्टिहीन पैदा हुई थी। आज मै अगर ये सब कर पा रही हूँ तो सिर्फ इस लिए क्योंकि मैंने ब्रेल सीखी है। मैं धन्यवाद देती हूँ उस महान लुईस ब्रेल को जिसने अपनी छोटी सी उम्र में ही इस पद्धति का आविषकार किया।'' - गीता  
छः उभरे हुए बिन्दुओं के विभिन्न संयोजनों का इस्तेमाल करके लिखी पढ़ी जाने वाली लिपि ही ब्रेल है। १८२९ में लुईस ब्रेल ने उभरे हुए बिन्दुओं के माध्यम से शब्द, संगीत, गीत लिखने की एक नयी विधि प्रकाशित की, जिसे दृष्टिहीनों द्वारा इस्तेमाल किया जाने लगा। 
लुईस ब्रेल का जन्म ४ जनवरी १८०९ में फ्रांस के एक छोटे से शहर कोउपवरे में एक जूता बनाने वाले के घर हुआ था। ३ साल की उम्र में खेल-खेल के दौरान ही लुईस ब्रेल की एक आंख चमड़े में छेद करने वाले औजार से घायल हो गई और धीरे-धीरे संक्रमण दूसरी आंख में भी हो गया जिसकी वजह से वे पूरी तरह से दृष्टिहीन हो गयें। इस ३ वर्षीय दृष्टिहीन बच्चें नें १५ वर्ष की उम्र तक पहुचते-पहुचते ब्रेल विधि का आविषकार कर लिया था। आज इस विधि ''ब्रेल'' का इस्तेमाल लिखने पढ़ने के लिए लगभग सभी देशों की भाषाओं में दृष्टिहीनों द्वारा किया जा रहा है।  
ब्रेल पद्धति का विकास होने से पहले दृष्टिहीनों को पढ़ने लिखने में बहुत समय लगता था क्योंकि वे अक्षरों को उभार कर लिखते और पढ़ते थें। ब्रेल पद्धति के विकास से लिखने और पढ़ने में कम समय लगने लगा और पहले की अपेक्षा लिखना-पढ़ना बहुत आसान हो गया। आधुनिक युग में बहुत सी नई तकनीकों का विकास हुआ जिसने दृष्टिहीनों का लिखने-पढ़ने का काम और आसान कर दिया। आधुनिक युग में ब्रेल पद्धति से लिखने-पढ़नें के लिए बहुत से उपकरणों का इस्तेमाल होता है। कुछ तो ऐसें है जिनसे ब्रेल में किताबे तक बन जाती है और कुछ जो कि कम्प्यूटर/ इन्टरनेट के माध्यम से उपलब्ध जानकारी को पढ़ने में मदद करते हैं। कुछ उपकरण ऐसे है जो इस्तेमाल में आसान होने के साथ-साथ किफायती भी हैं तो कुछ ऐसे जिनको इस्तेमाल करने के लिए काफी मेहनत करती पड़ती है और महंगे भी हैं। वर्तमान समय में कम्प्यूटर के माध्यम से अक्षरों को ब्रेल में बदल कर, ब्रेल प्रिन्टर/इम्बोसर का इस्तेमाल करके बहुत आसानी से किताबो, पत्रिकाओं का मुद्रण किया जाने लगा है। 
कुछ प्रमुख उपकरण जिनका उपयोग बहुत से दृष्टिहीन अपने स्कूल के काम, नौकरी के दौरान या फिर अपने व्यक्तिगत काम करने में करते हैं वे हैः - ब्रेल स्लेट और स्टाइलस, ब्रेल डिसप्ले, ईलेक्ट्रानिक बे्रल नोट-टेकर्स, ब्रेल प्रिन्टर, ब्रेल राईटर इत्यादि।   
दृष्टिहीनों में कम्प्यूटर का इस्तेमाल बढ़ने तथा असाधारण व्यक्तित्व के धनी कुछ दृष्टिहीनों का बिना ब्रेल सीखे ही जीवन में एक महत्वपूर्ण मुकाम को हासिल करने के साथ-साथ यह गलतफहमी भी बढ़ने लगी कि ब्रेल दृष्टिहीनों के लिए महत्वहीन हो गई है। यथार्थ में ऐसा नहीं है। यदि देखा जाये तो ब्रेल आज भी दृष्टिहीनों के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने के साथ-साथ उनमें कौच्चल तथा कुछ कर गुजरने की तमन्ना का मूल आधार बना हुआ है। जिन दृष्टिहीनों को ब्रेल अच्छी तरह से आती है उनकों जीवन के हर क्षेत्र में मदद मिलती है चाहे वो नौकरी कर रहे हो या पढ़ाई या फिर संगीत। ब्रेल आधारित बहुत सारे छोटे-छोटे उपकरण भी उपलब्ध है जिनका इस्तेमाल कही भी किया जा सकता है। चाहे वो नोट्स लेने में ही क्यो न हो।   
वास्तव में दृष्टिहीनों के जीवन में ब्रेल एक अहम स्थान रखती है। यह न सिर्फ उन्हें शिक्षित बनाती है बल्कि उन्हें आजादी का, बराबरी का भी एहसास कराती है। ब्रेल कुंजी है रोजगार की, आजादी की, और सफलता की। यह बहुत जरूरी है कि प्रत्येक ऐसे बच्चे को जो कि दृष्टिहीन है ब्रेल सिखाया जाय।