Thursday, August 14, 2008

Together we can bring a change in the life of Sunayana, a visually impaired............

Dear Friends,
Greetings from Antardrishti!

Antardrishti, an Agra based social development organisation is committed to the cause of blind people in our society. Towards this we had made a humble beginning in 2006. It is registered as a Public Charitable Trust under Indian Trust Act, 1882. Currently we are collecting information about visually impaired people in India to understand their situation in a comprehensive manner. This will help us to articulate and share plan and programs for their development.

If you know any visually impaired person and wish to support, kindly download the form and pass it on to him or her. If you find this cumbersome kindly fill the form on their behalf and send the detail by email at sunayana@antardrishti.org or by post to Antardrishti office.

The form is available at http://antardrishti.org/download.php?view.10.


We would also like to request you to forward this message to everyone in your contact list. This way we can reach to a lot more of them.

We are grateful to you for taking out time to read this message and hope that you will make sincere effort to send us the details of few visually impaired persons known to you. Thanking you in advance.

Yours

-- 
Akhil K. Srivastava

Managing Trustee & CEO
Antardrishti | www.antardrishti.org | drishti@antardrishti.org |
Antardrishti Helpline: 09759134511

Antardrishti Reg. No- 106/4 of 28.08.2006 / Agra 
Donations enjoy exemption u/s 80G (5) (vi) of Income Tax Act 1961
akhil@antardrishti.org | ph. + 91 94122 58575

Saturday, June 28, 2008

27 जून - हेलेन केलर के जन्‍मदिन पर विशेष

'दृष्टिहीनों की प्रगति में मुख्‍य बाधा दृष्टिहीनता नहीं बल्कि दृष्टिहीनों के प्रति समाज की नकारात्‍मक सोच है' -- हेलेन केलर

कल्‍पना कीजिये कि न तो आप देख सकते है और न ही सुन सकते है फिर भी क्‍या आप लिख, पढ़ और बोल सकते है, क्‍या दोस्‍त बना सकते है व उनके साथ खेल सकते है, कितना आसान होगा आपके लिए भाषण देना, किताबे व लेख लिखना और विभिन्‍न देशों की यात्रा करना। कभी समय मिले तो ज्‍यादा नही सिर्फ 10 मिनट के लिए अपनी ऑखों पर पटटी बांध कर अपने कार्यो को करने की कोशिश करें, समस्‍या की गंभीरता का एहसास हो जायेगा।

वैसे तो, दुनिया के इतिहास में विकलांगता के बावजूद अध्ययन-लेखन एवं रचनाशीलता के अन्य क्षेत्रों में अद्भुत उपलब्धियाँ हासिल करने वाले महान व्यक्तियों के दर्जनों उदाहरण हैं। जिन्‍होंने न सिर्फ अपना जीवन सफलतापूर्वक जिया बल्कि अपने जैसे लाखों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत भी बने । ऐसी ही असाधारण व्‍यक्तिव की धनी एक विदुषी महिला हेलेन केलर थी। उनका मानना था कि थोड़ी सी मदद से दृष्टिहीन लोग न सिर्फ अपना जीवन स्‍वंतत्रता पूर्वक जी सकते है बल्कि जो कुछ उन्‍हें समाज से मिलता है उससे ज्‍यादा वो समाज में अपने कार्यो द्वारा योगदान कर सकते है।

दृष्टिहीनो के लिए प्रेरणा स्रोत रही हेलन केलेर का नाम दुनिया के चंद ऐसे प्रभाव‍शाली व्‍यक्तियों में गिना जा सकता है, जिन्‍होंने दोहरी विकलांगता के बावजूद दुनिया को न सिर्फ एक नई दिशा दी बल्कि दुनिया को दृष्टिहीनों, बधिरों व अन्‍य प्रकार की विकलांगता से ग्रस्‍त लोगों को सम्‍मान देना सिखाया। बचपन से ही बधिर और दृष्टिहीन होने के बावजूद हेलेन केलर ने 20 वीं शताब्‍दी में राजनीतिक, सामाजिक, सांस्‍कृतिक आंदोलनों में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्‍होंने अपने

जीवनकाल में 39 देशों की यात्रा की तथा 1964 में अमेरीकी राष्‍ट्रपति जानसन ने उन्‍हें अमेरिका का सर्वोच्‍च नागरिक सम्‍मान प्रेसिडेन्‍ट मेडल ऑफ फ्रीडम से सम्‍मानित किया।

हेलेन केलर का जन्म संयुक्त राज्य अमरीका, अलबामा के उत्तर पश्चिमी ग्रामीण इलाके के छोटे से कस्‍बे टस्कंबिया में 27 जून 1880 को हुआ। वह एक असाधारण महिला थी जिन्‍होंने न सिर्फ अमेरिकी फाउंडेशन के लिए ब्लाइंड के साथ 44 वर्ष तक काम किया बल्कि विकलांगों के अधिकारों की जोरदार वकालत भी की।

दृष्टिहीनों और बधिरों की तरफ से उनके द्वारा किये गये कार्यो के लिए उन्‍हें दुनिया भर के विश्‍वविद्यालयों द्वारा सम्‍मानित किया गया जिसमें हार्वर्ड , ग्लासगो, बर्लिन और दिल्ली विश्‍वविद्यालय भी शामिल है। राष्ट्रपति ग्रोवर क्लीवलैंड से लेकर जॉन एफ कैनेडी तक सभी ने उनका व्हाइट हाउस में स्वागत किया।

लेकिन जब हम अपने आस-पास ऐसी प्रतिभाओं को शारीरिक विकलांगता की बाधाओं के साथ संघर्ष करते हुए आगे बढ़ते देखते हैं तो हमारे मन में प्रशंसा, कौतूहल, श्रद्धा, दुआ और प्रेरणा के भाव उमड़ने लगते हैं। विकलांगों को सामान्‍य छात्रों के साथ प्रतिस्‍पर्धा करते हुए सम्‍मानपूवर्क जीवन जीवने मे कितना संघर्ष करना पड़ता है और उसमें कितना अभ्यास शामिल होता है, उसे आम तौर पर हम लोग समझ नहीं पाते।

27 जून को पूरी दुनिया एक असाधारण व्‍यक्तिव की स्‍वामिनी हेलेन केलर का 128वा जन्‍मदिन मना रही होगी तो क्‍या हम लोग जिन्‍हें पांचो इन्द्रियों का इस्‍तेमाल करने की सुविधा उपलब्‍ध है, विकलांगों की समस्‍याओं को समझते हुए उनको समाज में बराबरी का दर्जा नहीं दे पायेगें ताकि वो भी सम्‍मानपूवर्क जीवन-यापन कर सके।

हेलेन केलर के शब्‍दों में 'हम वास्‍तव में कभी भी खुश नही रह सकते जब तक कि हम दूसरों के जीवन को अच्‍छा बनाने की कोशिश नहीं करते'। आइये आज ही प्रण करे कि जब भी किसी विकलांग व्‍यक्ति से मुलाकात होगी तो उसके प्रति हम न सिर्फ सकारात्‍मक सोच रखेगें बल्कि उसकों सम्‍मानपूर्वक बराबरी का दर्जा भी देंगें


Friday, May 2, 2008

विकलांगों के अधिकार, एक और कदम

3 अप्रैल 2008 को इक्‍वाडोर के संयुक्‍त राष्‍ट्र के 'विकलांग व्‍यक्तियों के अधिकार' कन्‍वेंशन पे हस्‍ताक्षर करने के साथ ही यह सुनिश्चित हो गया कि 3 मई 2008 से यह कार्यकारी शक्तियों के रूप में परिवर्तित हो जायेगाविकलांगतापूर्ण व्‍यक्तियों के अधिकारों का संयुक्‍त राष्‍ट्र कन्‍वेंशन एक अन्‍तर्राष्‍ट्रीय समझौता है, जो पूरी दुनिया में विकलांग व्‍यक्तियों के अधिकारों और मानसम्‍मान की रक्षा करने के लक्ष्‍य को लेकर हुआ। य‍ह कन्‍वेंशन विश्‍व की लगभग 10 प्रतिशत आबादी यानी विकलांग व्‍यक्तियों की आवाज को मजबूती प्रदान करता है। शायद ही पहले कभी किसी अंतर्राष्‍ट्रीय समझौते ने इस प्रकार से विकलांगों के अधिकारों को मान्‍यता दी हो, जैसी कि इस कन्‍वेंशन में तैयार की गई। इस शताब्‍दी के पहले मानवाधिकार कन्‍वेंशन को काफी तेजी से निपटाया गया, चाहे वह मसौदा लेखन का मसला रहा हो या सभी देशों द्वारा इसको मान्‍यता देना।


संयुक्‍त राष्‍ट्र के 'विकलांग व्‍यक्तियों के अधिकार' कन्‍वेंशन का उद्देश्‍य विकलांग व्‍यक्तियों के मानवाधिकारों को बढ़ाना, बचाव करना और यह सुनिश्चित करना, कि वे भी समानता पूर्वक जीवन का आंनद ले। यह कन्‍वेंशन विकलांगजनों के अधिकारों की व्‍यापक रूप से गांरटी लेता है। इसमें कई महत्‍वपूर्ण क्षेत्रों जैसे शिक्षा, भेदभाव, स्‍वास्‍थ्‍य, रोजगार, सुगमतापूर्वक शरीरिक एवं कार्यकारी पहुंच, निजी गतिशीलता, पुनर्वास, राजनीति में भागीदारी, समानता इत्‍यादि शामिल किए गए है।


उदाहरण के तौर पर यदि कोई देश इस समझौते पर हस्‍ताक्षर करता है तो उस देश के विकलांगता से ग्रसित बच्‍चों को भी सार्वजनिक स्‍कूलों में पढ़ने का अधिकार होगा। यह सुनिश्चित करने के लिए विकलांगता से ग्रसित बच्‍चे पढ़ाई का लाभ उठा सके, सार्वजनिक स्‍कूलों को भी अपनी कक्षाओं तथा पढ़ाई के तरीकों में बदलाव लाना होगा।


3 मई 2008 का दिन विकलांगता अधिकार आंदोलनो से जुड़े व्‍यक्तियों के लिए एक महत्‍वपूर्ण दिन बन जाता है। अब भारत को भी अपने वर्तमान विकलांगता कानून जो विकलांग व्‍यक्तियों (समान अवसर, सुरक्षा का अधिकार और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम 1995 और नीतियों में संशोधन करना होगा, ताकि वे कन्‍वेंशन के प्रावधानों से मेल खा सके जिस पर भारत ने 2 अक्‍टूबर 2007 में हस्‍ताक्षर किए है। इस कानून के एक दशक से भी ज्‍यादा पहले पारित हो जाने के बाद भी इसका क्रियान्‍वयन चिंताजनक रूप से नाकाफी है। यद्यपि कानून के सभी प्रावधान सशक्‍तीकरण करने वाले है और सरकार के उपर विकलांगजनों की पूर्ण भागीदारी के लिए सहूलियते प्रदान करने पर जोर डालते है, प‍रन्‍तु कई प्रावधानों के पहले 'अपनी आर्थिक क्षमताओं की सीमाओं के अंदर' जैसा लिखा होने और इसमें किसी भी प्रकार के दंण्‍डनीय प्रावधान के न होने की वजह से इसका शक्तिशाली रूप से पालन नहीं हो पा रहा है।


आजादी के 60 वर्षो बाद आज भी भारत में मौजूद सात करोड़ विकलांगजनों के साथ दोयम दर्जे का व्‍यवहार किया जाता है, इन लोगों के साथ अलगाव और भेदभाव आम बात है। ऐसे समय में जब दिन-प्रतिदिन नई - नई त‍कनी‍कों का विकास हो रहा है और अनेक बाधाओं के बावजूद इन तकनीकों की मदद से विकलांग जन कदम से कदम मिला कर चलने को बेताब है, आज भी देश की बहुसख्‍यंक आबादी इन्‍हें दया/घृणा या कल्‍याण का पात्र मानती है।


केवल दया, दान और कल्‍याण की भावना रखने से ही विकलांगजनों का उत्‍थान नहीं होगा उन्‍हें समाज में समानता देनी होगी। विकलांगता अधिकार आंदोलन दान, दया और कल्‍याण आधारित नीतियों की अपेक्षा अधिकार आधारित नीतियों को अपनाने पर बल देता है। जहां दान, दया या कल्‍याण आधारित नीतियां विकलांगजनों को सहानुभूति और दया के पात्र के रूप में देखता है, वही विकलांगता अधिकार आधारित नीतियां विकलांगजनों को यातायात, शिक्षा, समानता, सामाजिक सुरक्षा, रोजगार, बाधा रहित वातावरण इत्‍यादि जैसे विभिन्‍न मानकों की व्‍यवस्‍था के लिए राज्‍यों पर उचित कदम उठाने के लिए दबाव डालता है, जिसमें दया और सहानुभूति की जरूरत नहीं है।


अब जबकि यह कन्‍वेंशन 3 मई 2008 से एक कार्यकारी शक्ति के रूप में परिवर्तित हो जायेगा, यह महत्‍वपूर्ण हो जाता है कि विकलांगता अधिकार आंदोलनों से जुड़ी संस्‍थाएं, व्‍यक्ति किस तरह से इसका लाभ उठाते हुए सरकार पर दबाव डालकर इसको कार्यान्‍वित करने में कितना सफल हो पाते है। यह तो आने वाला समय ही बतायेगा कि विकलांगजनों के लिए यह कन्‍वेंशन कितना लाभकारी साबित होगा, या फिर यह कुछ संस्‍थाओं की मौज-मस्‍ती के लिए संयुक्‍त राष्‍ट्र का पारितोषिक अनुदान बनकर रह जायेगा।


Tuesday, February 26, 2008

ब्रेल

उभरे हुए छः बिन्दु, अलग-अलग स्वरूप बनाते हुए, ऐसे दिखते हैं जैसे की पूरे पृष्ठ पर फैला हुआ तारा मण्डल। क्या है ये? संख्या, अक्षर, शब्द? किसने बनाया इन्हें? इनका क्या मतलब है? कही कोई सांकेतिक भाषा तो नहीं? ऐसे बहुत सारे प्रश्‍न जहन में आते है जब हम किसी भी ऐसे पृष्ठ को देखते है जिसमें बहुत सारे उभरे हुए बिन्दु हो।   
१८२९ में लुईस ब्रेल ने उभरे हुए बिन्दुओं के माध्यम से शब्द, संगीत, गीत लिखने की एक नयी विधि प्रकाशित की, जिसे दृष्टिहीनों द्वारा इस्तेमाल किया जाने लगा। लुईस ब्रेल का जन्म ४ जनवरी १८०९ में फ्रांस के एक छोटे से शहर कोउपवरे में एक जूता बनाने वाले के घर हुआ था। ३ साल की उम्र में खेल-खेल के दौरान ही लुईस ब्रेल की एक आंख चमड़े में छेद करने वाले औजार से घायल हो गई और धीरे-धीरे संक्रमण दूसरी आंख में भी हो गया जिसकी वजह से वे पूरी तरह से दृष्टिहीन हो गयें। इस ३ वर्षीय दृष्टिहीन बच्चें नें १५ वर्ष की उम्र तक पहुचते-पहुचते ब्रेल विधि का आविषकार कर लिया था। आज इस विधि ''ब्रेल'' का इस्तेमाल लिखने पढ़ने के लिए लगभग सभी देशों की भाषाओं में दृष्टिहीनों द्वारा किया जा रहा है।  
छः उभरे हुए बिन्दुों का ही जादू है कि आज दुनिया भर के दृष्टिहीन आम लोगो की तरह लिखने पढ़ने में सक्षम हो पा रहे है। इन छः उभरे हुए बिन्दुों के माध्यम से ६३ विभिन्न प्रकार के सयोंजन बना कर किसी भी भाषा में लिखा जा सकता है। गणित, विज्ञान आदि अन्य कई विषयों में भी ब्रेल का इस्तेमाल किया जाता है। ब्रेल को पढ़ने के लिए ऐसे कागज - जिस पर ब्रेल कोड उभार लिए हुए उत्कीर्ण होता है - पर उंगुलियां धीरे-धीरे फिसलते हुए चलाई जाती हैं। एक धातु की स्लेट पर लगे कागज पर लिखित मसौदा प्राप्त करने हेतु एक नुकीले उपकरण से बिन्दुओं को दबाया जाता है। इस प्रकार पठन सामग्री कागज के दूसरी तरफ उभर आती है। जिसे स्पर्श करके पढ़ा जाता है।  
ब्रेल पद्धति के मूल आधार को 'ब्रेल सेल' के नाम से जाना जाता है। ये सेल ६ बिन्दुओं के होते हैं और एक निश्चित क्रमबद्धता में होते हैं। प्रत्येक बिन्दु या बिन्दुओं की श्रृंखला वर्णमाला के किसी अक्षर को प्रदर्च्चित करता है। उदाहरणार्थ यदि आप ब्रेल की वर्णमाला में देखें तो पायेगें कि बिन्दु १ वर्णाक्षर अ तथा बिन्दु १ और २ वर्णाक्षर क को प्रदर्च्चित करतें हैं।    
इसी तरह ब्रेल में पूरी वर्णमाला लिखी जा सकती है। नीचे दी गई तालिका में हिन्दी वर्णमाला को ब्रेल लिपी में दिखाया गया है। बड़े बिन्दुओं को उभरे हुऐ बिन्दुओं के रूप में दिखाया गया है। उभरे हुऐ बिन्दुओं को समझने के लिए ही यहा पर छोटे बिन्दुओं को भी दर्च्चाया गया है। असली ब्रेल में ये छोटे बिन्दु नहीं होते है। ब्रेल सेल के विभिन्न संयोजन के द्वारा विराम चिन्ह, अंक, संगीत के चिन्ह यहां तक कि उच्च गणित को भी लिखा जाता है।    

ब्रेल पद्धति का विकास होने से पहले दृष्टिहीनों को पढ़ने लिखने में बहुत समय लगता था क्योंकि वे अक्षरों को उभार कर लिखते और पढ़ते थें। ब्रेल पद्धति के विकास से लिखने और पढ़ने में कम समय लगने लगा और पहले की अपेक्षा लिखना-पढ़ना बहुत आसान हो गया। आधुनिक युग में बहुत सी नई तकनीकों का विकास हुआ जिसने दृष्टिहीनों का लिखने-पढ़ने का काम और आसान कर दिया। आधुनिक युग में ब्रेल पद्धति से लिखने-पढ़नें के लिए बहुत से उपकरणों का इस्तेमाल होता है। कुछ तो ऐसें है जिनसे ब्रेल में किताबे तक बन जाती है और कुछ जो कि कम्प्यूटर/ इन्टरनेट के माध्यम से उपलब्ध जानकारी को पढ़ने में मदद करते हैं। कुछ उपकरण ऐसे है जो इस्तेमाल में आसान होने के साथ-साथ किफायती भी हैं तो कुछ ऐसे जिनको इस्तेमाल करने के लिए काफी मेहनत करती पड़ती है और महंगे भी हैं।   
वर्तमान समय में कम्प्यूटर के माध्यम से अक्षरों को ब्रेल में बदल कर, ब्रेल प्रिन्टर/इम्बोसर का इस्तेमाल करके बहुत आसानी से किताबो, पत्रिकाओं का मुद्रण किया जाने लगा है। कुछ प्रमुख उपकरण जिनका उपयोग बहुत से दृष्टिहीन अपने स्कूल के काम, नौकरी के दौरान या फिर अपने व्यक्तिगत काम करने में करते हैं वे हैः - ब्रेल स्लेट और स्टाइलस, ब्रेल डिसप्ले, ईलेक्ट्रानिक बे्रल नोट-टेकर्स, ब्रेल प्रिन्टर, ब्रेल राईटर इत्यादि।
 

Tuesday, January 1, 2008

मै भी पढ़-लिख सकती हूँ।

''जी हॉं मै भी पढ़ सकती हूँ लोगों की भावनाओं को, उनके अनुभवों को, उनकी सफलताओं को, समाचार को और भी बहुत कुछ। मुझे भी लिखना आता है अपने विचारो को, अपनी भावनाओं को, मै भी लिख कर अपनी भावनाओं, विचारों को सभी लोगों के साथ बांट सकती हूँ और अपना योगदान दे सकती हूँ संसार को आगे बढ़ाने में, समाज को बेहतर बनाने में। आप सोच रहे होंगे कि इसमें कौन सी ऐसी नयी बात है जिसके लिए मैं उत्साहित हूँ - एक पढ़े-लिखे व्यक्ति से सब लोग इसी तरह की उम्मीद रखते है।  लेकिन नहीं यहां पर एक बडा+ अंतर है - मैं दृष्टिहीन पैदा हुई थी। आज मै अगर ये सब कर पा रही हूँ तो सिर्फ इस लिए क्योंकि मैंने ब्रेल सीखी है। मैं धन्यवाद देती हूँ उस महान लुईस ब्रेल को जिसने अपनी छोटी सी उम्र में ही इस पद्धति का आविषकार किया।'' - गीता  
छः उभरे हुए बिन्दुओं के विभिन्न संयोजनों का इस्तेमाल करके लिखी पढ़ी जाने वाली लिपि ही ब्रेल है। १८२९ में लुईस ब्रेल ने उभरे हुए बिन्दुओं के माध्यम से शब्द, संगीत, गीत लिखने की एक नयी विधि प्रकाशित की, जिसे दृष्टिहीनों द्वारा इस्तेमाल किया जाने लगा। 
लुईस ब्रेल का जन्म ४ जनवरी १८०९ में फ्रांस के एक छोटे से शहर कोउपवरे में एक जूता बनाने वाले के घर हुआ था। ३ साल की उम्र में खेल-खेल के दौरान ही लुईस ब्रेल की एक आंख चमड़े में छेद करने वाले औजार से घायल हो गई और धीरे-धीरे संक्रमण दूसरी आंख में भी हो गया जिसकी वजह से वे पूरी तरह से दृष्टिहीन हो गयें। इस ३ वर्षीय दृष्टिहीन बच्चें नें १५ वर्ष की उम्र तक पहुचते-पहुचते ब्रेल विधि का आविषकार कर लिया था। आज इस विधि ''ब्रेल'' का इस्तेमाल लिखने पढ़ने के लिए लगभग सभी देशों की भाषाओं में दृष्टिहीनों द्वारा किया जा रहा है।  
ब्रेल पद्धति का विकास होने से पहले दृष्टिहीनों को पढ़ने लिखने में बहुत समय लगता था क्योंकि वे अक्षरों को उभार कर लिखते और पढ़ते थें। ब्रेल पद्धति के विकास से लिखने और पढ़ने में कम समय लगने लगा और पहले की अपेक्षा लिखना-पढ़ना बहुत आसान हो गया। आधुनिक युग में बहुत सी नई तकनीकों का विकास हुआ जिसने दृष्टिहीनों का लिखने-पढ़ने का काम और आसान कर दिया। आधुनिक युग में ब्रेल पद्धति से लिखने-पढ़नें के लिए बहुत से उपकरणों का इस्तेमाल होता है। कुछ तो ऐसें है जिनसे ब्रेल में किताबे तक बन जाती है और कुछ जो कि कम्प्यूटर/ इन्टरनेट के माध्यम से उपलब्ध जानकारी को पढ़ने में मदद करते हैं। कुछ उपकरण ऐसे है जो इस्तेमाल में आसान होने के साथ-साथ किफायती भी हैं तो कुछ ऐसे जिनको इस्तेमाल करने के लिए काफी मेहनत करती पड़ती है और महंगे भी हैं। वर्तमान समय में कम्प्यूटर के माध्यम से अक्षरों को ब्रेल में बदल कर, ब्रेल प्रिन्टर/इम्बोसर का इस्तेमाल करके बहुत आसानी से किताबो, पत्रिकाओं का मुद्रण किया जाने लगा है। 
कुछ प्रमुख उपकरण जिनका उपयोग बहुत से दृष्टिहीन अपने स्कूल के काम, नौकरी के दौरान या फिर अपने व्यक्तिगत काम करने में करते हैं वे हैः - ब्रेल स्लेट और स्टाइलस, ब्रेल डिसप्ले, ईलेक्ट्रानिक बे्रल नोट-टेकर्स, ब्रेल प्रिन्टर, ब्रेल राईटर इत्यादि।   
दृष्टिहीनों में कम्प्यूटर का इस्तेमाल बढ़ने तथा असाधारण व्यक्तित्व के धनी कुछ दृष्टिहीनों का बिना ब्रेल सीखे ही जीवन में एक महत्वपूर्ण मुकाम को हासिल करने के साथ-साथ यह गलतफहमी भी बढ़ने लगी कि ब्रेल दृष्टिहीनों के लिए महत्वहीन हो गई है। यथार्थ में ऐसा नहीं है। यदि देखा जाये तो ब्रेल आज भी दृष्टिहीनों के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने के साथ-साथ उनमें कौच्चल तथा कुछ कर गुजरने की तमन्ना का मूल आधार बना हुआ है। जिन दृष्टिहीनों को ब्रेल अच्छी तरह से आती है उनकों जीवन के हर क्षेत्र में मदद मिलती है चाहे वो नौकरी कर रहे हो या पढ़ाई या फिर संगीत। ब्रेल आधारित बहुत सारे छोटे-छोटे उपकरण भी उपलब्ध है जिनका इस्तेमाल कही भी किया जा सकता है। चाहे वो नोट्स लेने में ही क्यो न हो।   
वास्तव में दृष्टिहीनों के जीवन में ब्रेल एक अहम स्थान रखती है। यह न सिर्फ उन्हें शिक्षित बनाती है बल्कि उन्हें आजादी का, बराबरी का भी एहसास कराती है। ब्रेल कुंजी है रोजगार की, आजादी की, और सफलता की। यह बहुत जरूरी है कि प्रत्येक ऐसे बच्चे को जो कि दृष्टिहीन है ब्रेल सिखाया जाय।