'दृष्टिहीनों की प्रगति में मुख्य बाधा दृष्टिहीनता नहीं बल्कि दृष्टिहीनों के प्रति समाज की नकारात्मक सोच है' -- हेलेन केलर
कल्पना कीजिये कि न तो आप देख सकते है और न ही सुन सकते है फिर भी क्या आप लिख, पढ़ और बोल सकते है, क्या दोस्त बना सकते है व उनके साथ खेल सकते है, कितना आसान होगा आपके लिए भाषण देना, किताबे व लेख लिखना और विभिन्न देशों की यात्रा करना। कभी समय मिले तो ज्यादा नही सिर्फ 10 मिनट के लिए अपनी ऑखों पर पटटी बांध कर अपने कार्यो को करने की कोशिश करें, समस्या की गंभीरता का एहसास हो जायेगा।
वैसे तो, दुनिया के इतिहास में विकलांगता के बावजूद अध्ययन-लेखन एवं रचनाशीलता के अन्य क्षेत्रों में अद्भुत उपलब्धियाँ हासिल करने वाले महान व्यक्तियों के दर्जनों उदाहरण हैं। जिन्होंने न सिर्फ अपना जीवन सफलतापूर्वक जिया बल्कि अपने जैसे लाखों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत भी बने । ऐसी ही असाधारण व्यक्तिव की धनी एक विदुषी महिला हेलेन केलर थी। उनका मानना था कि थोड़ी सी मदद से दृष्टिहीन लोग न सिर्फ अपना जीवन स्वंतत्रता पूर्वक जी सकते है बल्कि जो कुछ उन्हें समाज से मिलता है उससे ज्यादा वो समाज में अपने कार्यो द्वारा योगदान कर सकते है।
दृष्टिहीनो के लिए प्रेरणा स्रोत रही हेलन केलेर का नाम दुनिया के चंद ऐसे प्रभावशाली व्यक्तियों में गिना जा सकता है, जिन्होंने दोहरी विकलांगता के बावजूद दुनिया को न सिर्फ एक नई दिशा दी बल्कि दुनिया को दृष्टिहीनों, बधिरों व अन्य प्रकार की विकलांगता से ग्रस्त लोगों को सम्मान देना सिखाया। बचपन से ही बधिर और दृष्टिहीन होने के बावजूद हेलेन केलर ने 20 वीं शताब्दी में राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपने
जीवनकाल में 39 देशों की यात्रा की तथा 1964 में अमेरीकी राष्ट्रपति जानसन ने उन्हें अमेरिका का सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्रेसिडेन्ट मेडल ऑफ फ्रीडम से सम्मानित किया।
हेलेन केलर का जन्म संयुक्त राज्य अमरीका, अलबामा के उत्तर पश्चिमी ग्रामीण इलाके के छोटे से कस्बे टस्कंबिया में 27 जून 1880 को हुआ। वह एक असाधारण महिला थी जिन्होंने न सिर्फ अमेरिकी फाउंडेशन के लिए ब्लाइंड के साथ 44 वर्ष तक काम किया बल्कि विकलांगों के अधिकारों की जोरदार वकालत भी की।
दृष्टिहीनों और बधिरों की तरफ से उनके द्वारा किये गये कार्यो के लिए उन्हें दुनिया भर के विश्वविद्यालयों द्वारा सम्मानित किया गया जिसमें हार्वर्ड , ग्लासगो, बर्लिन और दिल्ली विश्वविद्यालय भी शामिल है। राष्ट्रपति ग्रोवर क्लीवलैंड से लेकर जॉन एफ कैनेडी तक सभी ने उनका व्हाइट हाउस में स्वागत किया।
लेकिन जब हम अपने आस-पास ऐसी प्रतिभाओं को शारीरिक विकलांगता की बाधाओं के साथ संघर्ष करते हुए आगे बढ़ते देखते हैं तो हमारे मन में प्रशंसा, कौतूहल, श्रद्धा, दुआ और प्रेरणा के भाव उमड़ने लगते हैं। विकलांगों को सामान्य छात्रों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए सम्मानपूवर्क जीवन जीवने मे कितना संघर्ष करना पड़ता है और उसमें कितना अभ्यास शामिल होता है, उसे आम तौर पर हम लोग समझ नहीं पाते।
27 जून को पूरी दुनिया एक असाधारण व्यक्तिव की स्वामिनी हेलेन केलर का 128वा जन्मदिन मना रही होगी तो क्या हम लोग जिन्हें पांचो इन्द्रियों का इस्तेमाल करने की सुविधा उपलब्ध है, विकलांगों की समस्याओं को समझते हुए उनको समाज में बराबरी का दर्जा नहीं दे पायेगें ताकि वो भी सम्मानपूवर्क जीवन-यापन कर सके।
हेलेन केलर के शब्दों में 'हम वास्तव में कभी भी खुश नही रह सकते जब तक कि हम दूसरों के जीवन को अच्छा बनाने की कोशिश नहीं करते'। आइये आज ही प्रण करे कि जब भी किसी विकलांग व्यक्ति से मुलाकात होगी तो उसके प्रति हम न सिर्फ सकारात्मक सोच रखेगें बल्कि उसकों सम्मानपूर्वक बराबरी का दर्जा भी देंगें।