Monday, December 3, 2007

3 दिसंबर – विश्‍व विकलांग दिवस

विकलांगों की वर्तमान स्थिति पर एक नजर

आधुनिक युग में मुक्ति आंदालनों, स्‍वाधीनता संग्रामों ने लोकतांञिक समाज की अवधारणा को जन्‍म दिया और राष्‍ट्र राज्‍य का अभ्‍युदय भी इसी प्रक्रिया का अंग था। द्वितीय विश्‍व युध्‍द की समाप्ति के पश्‍चात राष्‍ट्र राज्‍यों ने एक लोक कल्‍याणकारी भूमिका निभाने का मन बनाया था – आजाद भारत भी उसमें शामिल था।

महात्‍मा गांधी, भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस तथा स्‍वाधीनता संग्राम में अर्जित मूल्‍य, भारतीय संविधान, सभी का यह मानना तथा कहना था कि समाज के कमजोर, गरीब तथा अलग थलग पड़े हिस्‍से को विशेष महत्‍व तथा प्राथमिकता दी जाये।

स्‍वाधीनता के पश्‍चात इस दिशा में पहल भी की गयी कमजोर वर्ग के उत्‍थान विकास के लिए नियम – कानून और योजनाएं बनायी गयीं। काफी सीमा तक उन पर अमल भी हुआ परंतु शारीरिक, मानसिक रूप से विकलांग तबके पर सरकार तथा समाज का ध्‍यान कम ही जा पाया। बेहतरी और सुविधाओं से जुड़ी घोषणाएं तो हुई परंतु समाज के इस तबके तक उसका लाभ नहीं पहुंच पाया और ना ही समाज की सोच में कोई बदलाव आ पाया। इच्‍छाशक्ति की कमी तथा सत्‍ता प्रतिष्‍ठान और उसके कारिंदों की सोच इसका मूल कारण रही है।

सन् 1995 में विकलांगों की सहायता के लिए पास किए गए The Persons with Disabilities (Equal Opportunities, Protection of Rights and Full Participation) Act, 1995 में भी रोजगार को बढ़ावा देने का प्रावधान है। सभी प्रकार की सरकारी नौकरीयों में 3 प्रतिशत का कोटा विकलांगों के लिए निधार्रित किया गया। इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों के लिए गरीबी हटाओं योजना के तहत भी कुल बजट का 3 प्रतिशत विकलांगों के लिए सुनिश्‍चित किया गया जिसे कुछ राज्‍य काफी हद तक स्‍वर्ण जयंती पुनर्वास योजना द्वारा विकलांगों तक पहुचाने में सफल रहें। लेकिन विकलांगों के एक बड़ तबके को जानकारी के आभाव में इस तरह की सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। स्‍वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए भी बहुत सारी योजनाएं बनायी गई जिनमें से कई योजनाओं कों लागू करने और वित्‍तीय सहयोग प्रदान करने के लिए National Handicap Finance Development Corporation का गठन किया गया। देश के हर राज्‍य में विकलांगों के लिए रोजगार प्रदान करने हेतु विशेष रूप से केन्‍द्रों का गठन किया गया है, जिनका मुख्‍य उदेश्‍य ही विकलांगों को रोजगार उपलब्‍ध कराने में मदद करना है।

यदि हम सिर्फ दृष्टिहीनों की बात करे तो सरकारी और गैरसरकारी संगठनों के अथक प्रयास के बावजूद अभी तक हमारे देश में दृष्टिहीनों को रोजगार उपलब्‍ध करा पाने की योजनाए आपेक्षित सफल नहीं प्राप्‍त हो पाई है। इस बात में कोई शक नहीं होना चाहिए कि इन सामूहिक प्रयासों की वजह से ही स्थिति में पहले की तुलना में काफी बदलाव देखने को मिलता है।

2001 की जनगणना के अनुसार आगरा जनपद में 59065 दृष्टिबाधित विकलांग थे जिनमें से 38957 लोग किसी भी प्रकार का कोई काम नहीं कर रहें थे। जनपद आगरा 6 तहसील और 15 ब्‍लाकों में बटा हुआ है जिसमें 114 न्‍याय पंचायते और 636 ग्राम सभाएं हैं। एक अनुमान के मुताबिक आगरा में 6 से 14 वर्ष की आयु के लगभग 1400 बच्‍चें है जो कि सर्व शिक्षा अभियान द्वारा चालाऐ जा रहे सबको शिक्षा कार्यक्रम के तहत पढ़ाई कर रहे हैं। इसी प्रकार लगभग 40 दृष्टिबाधित विकलांग रूनकता स्थिति सूरदास स्‍मृति नेत्रहीन शिक्षण प्रशिक्षण स्‍कूल में पढ़ाई कर रहें हैं। लगभग एक वर्ष पूर्व नगला अजीत पुरा में खुले राधास्‍वामी दृष्टिबाधितार्थ संस्‍थान में भी कुछ बच्‍चें पढ़ाई कर रहें है। आश्‍चर्यजनक रूप से आगरा में दृष्टिहीन लड़कियों के लिए किसी भी प्रकार की पढ़ाई की कोई विशेष व्‍यवस्‍था नहीं हैं। त‍कनीकि/व्‍याव‍सायिक शिक्षा की बात करे तो स्थिति और भी खराब है, इन प्रशिक्षणों के नाम पर इन विद्यालयों में कुर्सी बुनाई, मोमबत्‍ती, वाशिंग पाउडर, हथकरघा, शार्ट हैण्‍ड, टकंड इत्‍यादि का प्रशिक्षण दिया जा रहा हैं। देखा जाए तो नियमित रूप से उच्‍च शिक्षा या व्‍यावसायिक शिक्षा प्राप्‍त कर रहे दृष्टिहीनों की सख्‍या आगरा के कुल दृष्टिबाधितों की तुलना में न के बराबर है।

इन दृष्टिहीनों से जो कि शिक्षण प्रशिक्षण प्राप्‍त कर रहे है या कर चुके है, से बातचीत के बाद किसी को भी यह कहने में कोई संकोच नहीं होगा कि दृष्टिहीनों की स्थिति आगरा शहर में बहुत ही दयनीय है, रोजगार के अवसर न के बराबर है। तेजी से बढ़ते बाजारीकरण के इस दौर में दृष्टिहीनों के लिए रोजगार की संभावनाएं बहुत ही सीमित है और वर्तमान समय के इस प्रतिस्‍पर्धी युग में जो तकनीकी प्रशिक्षण इनको मिल पा रहा है वो रोजगार दिलाने में पूरी तरह से असफल माना जायेगा।

यदि हम दृष्टिहीनों की वर्तमान स्थिति पर विचार करे तो यह कहने में कोई संकोच नहीं होगा कि आजादी के 60 वर्षो के बाद भी दृष्टिहीनों को समाज की मुख्‍यधारा से जोड़ने में असफल रहें हैं। आज भी दृष्टिहीनों को समाज में दया या घृणा के पात्र के रूप में देखा जाता है।

रोजगार न मिल पाने का एक बड़ा कारण दृष्टिहीनों की समाज में स्‍वीकृति न होना पाना है। जब तक समाज का वो तबका जो कि किसी न किसी रूप से दृष्टिहीनों के जीवन को प्रभावित करता है इनकी मौजूदगी को स्‍वीकार नहीं करेगा तब तक किसी भी तरह के बदलाव की कल्‍पना करना भी बेमानी ही होगा।

जानकारी के अभाव में ज्‍यादातर लोग ये मानने को तैयार नहीं होते कि दृष्टिहीन भी उन्‍हीं की तरह से गुणवत्‍तापूर्वक कार्य को सम्‍पन्‍न कर सकते हैं। बड़ी संख्‍या में दृष्टिहीनों को बिना उनकी क्षमताओं का परखे हुए ही रोजगार के‍ लिए अयोग्‍य घोषित कर दिया जाता है क्‍योंकि वो दृष्टिहीन है। कही – कहीं तो साक्षात्‍कार तक के लिए भी आमंत्रि‍त नहीं किया जाता। हकीकत में ऐसा नहीं है आज नई – नई तकनीकों का इस्‍तेमाल करते हुए ये दृष्टिहीन लोग भी उसी तरह से कार्य सम्‍पन्‍न कर सकते है जैसे कि एक आम आदमी करता है।

आज जरूरत इस बात की है कि समाज को इनके प्रति जागरूक बनाने के साथ – साथ इनको समान अवसर और कौशल दिलाया जाएं। विकलांगों को दया की नहीं, बल्कि अवसरों की उपलब्‍धता की जरूरत है जिससे वे अपनी उपयोगिता भी सिद्व कर सकें और समाज की मुख्‍यधारा से जुड़ सके। विकलांगों में इन उपलब्‍ध अवसरों में अपनी भूमिका निभा सकने योग्‍य क्षमता पैदा करने की जिम्‍मेदारी हम सबको उठानी होगी।

विश्‍व विकलांग दिवस के अवसर पर हम सभी लोगों को आगे आकर ये सुनिश्‍चित करना चाहिए कि विकलांगो को न सिर्फ समाज में समान अवसर, पूर्ण भागीदारी और उनके अधिकार मिले बल्कि शिक्षा, रोजगार, सामाजिक सुरक्षा और बाधा–मुक्‍त बातावरण भी मिले।

Monday, October 1, 2007

Amitabh to witness performance by blind orchestra

NAGPUR: Superstar Amitabh Bachchan will witness a performance by a Nagpur-based orchestra consisting of young blind musicians, in Mumbai on Monday.

The children, from the music group 'Swargandha,' would give a special 30-minute performance for the film star at Mehboob Studios in Bandra, Vivek Lohakare, the orchestra director, said on Sunday.

The programme would consist entirely of songs that have been picturised on Amitabh Bachchan himself, he said.

The orchestra consisted of 17 artistes - 3 girls and 14 boys - between 15 and 25 years of age, Mr Lohakare said. They were all either present or past students of a school for the visually handicapped run by the Blind Relief Association here, he said.

Mr Lohakare, who is a music teacher at the school, said he had formed the orchestra to ensure that the visually handicapped had a means of respectable livelihood.

''The group gives regular performances and gets paid for it. The money is distributed equally among the musicians,'' he said.

The group had sent a letter complimenting Amitabh on his performance in the film 'Black,' along with a compact disc (CD) of a recording of a programme by the orchestra, about two years ago, and had offered to give a performance before the star, Mr Lohakare said.

The superstar had agreed to grant an audience, but had not been able to give a specific date so far because of his busy schedule, he also said.

''Mr Bachchan's secretary sent us a fax last week, inviting us for a performance on October 1. We are leaving for Mumbai by air tomorrow. We will have a short interaction with him after the performance, and then return to Nagpur by train,'' Mr Lohakare informed.